सपने ।
सपने अब जवान हो गए है
पेड़ के हिलते झरोके समान हो गए है।
कैसे कह दूँ इनमे जान नहीं
ये बूढ़े की लकड़ी सामान हो गए है।
दो दिन पहले ही तो जन्मे थे
मगर अब हाथी सामान हो गए है
सपने अब जवान हो गए है।।
मैं कैसे सोता रात भर
ये सपने ही तो थे मेरे अपने
कुछ खिल खिला उठे हैं।
तो कुछ बैठे बैठे बेईमान हो गये है
सपने अब जवान हो गए है।।